डिलीवरी ट्रेडिंग क्या है / What is Delivery Trading In Hindi

अपने पिछले लेखों में हमने कई प्रकार के ट्रेडिंग स्ट्रेटजी के बारे में चर्चा किया है | मेरे प्रिय पाठकों क्या आप डिलीवरी ट्रेडिंग (Delivery Trading) के बारे में जानते है | आज के अपने इस लेख में हम सब डिलीवरी ट्रेडिंग के बारे में विस्तार से पढेंगे | 

डिलीवरी ट्रेडिंग क्या है / What is Delivery Trading In Hindi

डिलीवरी – ट्रेडिंग एक ऐसा निवेश तरीका है जिसमें निवेशक स्टॉक मार्केट में शेयरों को खरीदते हैं और उन्हें एक निश्चित अवधि तक होल्ड करते हैं | इस प्रकार की ट्रेडिंग का मुख्य उद्देश्य स्टॉक्स को खरीदे जाने के बाद लंबे समय तक होल्ड करना होता है ताकि समय के साथ स्टॉक की कीमत बढ़े और निवेशक को लाभ हो | यह अन्य ट्रेडिंग विधियों जैसे इंट्राडे ट्रेडिंग से अलग है, जहां ट्रेडर एक ही दिन के भीतर शेयर खरीदते और बेचते हैं |

डिलीवरी ट्रेडिंग की मूल बातें

  1. शेयर की डिलीवरी: डिलीवरी ट्रेडिंग में, जब कोई निवेशक किसी कंपनी के शेयर खरीदता है, तो उन शेयरों को निवेशक के डीमैट अकाउंट में ट्रांसफर कर दिया जाता है | यह प्रक्रिया शेयरों की “डिलीवरी” कहलाती है | शेयर निवेशक के खाते में रहने के बाद उसे जब तक चाहे होल्ड कर सकते हैं |

  2. होल्डिंग पीरियड: डिलीवरी ट्रेडिंग में निवेशक को यह स्वतंत्रता होती है कि वे कितने समय तक शेयर होल्ड करेंगे | आप इसे कुछ दिनों से लेकर कुछ सालों तक भी रख सकते हैं, यह निवेशक की रणनीति और वित्तीय लक्ष्य पर निर्भर करता है |

  3. लंबी अवधि का निवेश: डिलीवरी ट्रेडिंग का उद्देश्य आमतौर पर लंबी अवधि में लाभ कमाना होता है | निवेशक तब तक शेयर होल्ड करता है जब तक उसे लगता है कि स्टॉक की कीमत बढ़ गई है और उन्हें पर्याप्त लाभ मिल सकता है |डिलीवरी ट्रेडिंग क्या है /  What is Delivery Trading In Hindi

  4. लाभांश और बोनस: डिलीवरी ट्रेडिंग का एक और फायदा यह है कि जो निवेशक कंपनी के शेयर लंबे समय तक होल्ड करते हैं, वे कंपनी द्वारा दिए गए लाभांश (dividend) और बोनस शेयरों के पात्र हो सकते हैं | यह अतिरिक्त लाभ होता है जो निवेशक को शेयरों की कीमत में बढ़ोतरी के अलावा मिलता है |

  5. मूल्य वृद्धि: डिलीवरी – ट्रेडिंग में मुख्य लाभ स्टॉक्स की कीमत में वृद्धि से आता है | जब कोई कंपनी अच्छा प्रदर्शन करती है, तो उसके शेयरों की कीमत बढ़ती है और निवेशक उन्हें ऊंचे दाम पर बेचकर लाभ कमा सकते हैं |

  6. जोखिम: डिलीवरी ट्रेडिंग के साथ-साथ जोखिम भी जुड़ा हुआ है | अगर किसी कंपनी का प्रदर्शन कमजोर होता है या मार्केट में गिरावट आती है, तो निवेशकों को नुकसान हो सकता है | इसलिए, निवेशक को कंपनी की फंडामेंटल एनालिसिस पर ध्यान देना चाहिए और लंबी अवधि की संभावनाओं का आकलन करना चाहिए | कंपनी का फंडामेंटल एनालिसिस कैसे करें ?

डिलीवरी ट्रेडिंग के फायदे (Benefits of delivery trading)

  1. लंबी अवधि का निवेश: डिलीवरी ट्रेडिंग का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह निवेशक को लंबी अवधि के लिए निवेश करने का मौका देता है | निवेशक को शेयरों को बेचने के लिए जल्दबाजी नहीं करनी पड़ती और वे बाजार की अस्थिरता से बच सकते हैं |

  2. लाभांश प्राप्त करना: शेयर होल्ड करने की अवधि के दौरान, निवेशक को कंपनी द्वारा वितरित किए गए लाभांश का लाभ मिलता है | इससे उन्हें नियमित आय भी प्राप्त हो सकती है |डिलीवरी ट्रेडिंग के फायदे (Benefits of delivery trading)

  3. कम जोखिम: इंट्राडे ट्रेडिंग की तुलना में, डिलीवरी ट्रेडिंग में जोखिम कम होता है, क्योंकि निवेशक को शेयर बेचने के लिए एक ही दिन पर निर्भर नहीं रहना पड़ता | वे बाजार में गिरावट का इंतजार कर सकते हैं और फिर सही समय पर स्टॉक को बेच सकते हैं |

  4. ध्यान केंद्रित करने का समय: डिलीवरी – ट्रेडिंग में निवेशक को बाजार की स्थिति पर हर समय ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होती | एक बार जब वे शेयर खरीद लेते हैं, तो उन्हें बस यह सुनिश्चित करना होता है कि वे सही समय पर शेयर बेचें |

  5. ब्याज या उधारी की जरूरत नहीं: डिलीवरी ट्रेडिंग में निवेशक को स्टॉक खरीदने के लिए उधारी लेने की आवश्यकता नहीं होती है, जैसे कि कुछ अन्य ट्रेडिंग स्टाइल में होता है | वे अपने निवेश को सीधे खरीद सकते हैं और होल्ड कर सकते हैं |

डिलीवरी ट्रेडिंग के नुकसान (Disadvantages of delivery trading)

  1. निवेश की राशि की आवश्यकता: चूंकि डिलीवरी ट्रेडिंग में निवेशक को शेयर की पूरी कीमत चुकानी होती है, इसलिए इसमें अधिक धन की आवश्यकता होती है | यह छोटे निवेशकों के लिए एक चुनौती हो सकती है, खासकर अगर शेयर की कीमतें ज्यादा हों |

  2. लंबे समय तक होल्डिंग का जोखिम: यदि निवेशक लंबे समय तक शेयर होल्ड करते हैं और कंपनी का प्रदर्शन गिरता है, तो उन्हें नुकसान हो सकता है | इसके साथ ही, बाजार की अस्थिरता भी निवेशकों के लिए जोखिमपूर्ण हो सकती है |

  3. शेयर की लिक्विडिटी: कुछ कंपनियों के शेयरों में पर्याप्त लिक्विडिटी नहीं होती, जिससे उन्हें बेचना कठिन हो सकता है | ऐसे शेयरों को बेचने में समय लग सकता है और निवेशक को बाजार के नुकसान का सामना करना पड़ सकता है |

  4. लागत: डिलीवरी – ट्रेडिंग में भी ब्रोकर की फीस, डीमैट अकाउंट चार्जेज और अन्य लेन-देन शुल्क होते हैं, जो निवेश के कुल मुनाफे को कम कर सकते हैं | इन खर्चों का ध्यान रखना आवश्यक है, खासकर यदि आप लंबे समय तक स्टॉक होल्ड कर रहे हैं | सोते-सोते पैसे कमाए / Passive Income Ideas In India

डिलीवरी ट्रेडिंग के लिए आवश्यक कदम

  1. डीमैट अकाउंट खोलें: डिलीवरी ट्रेडिंग शुरू करने से पहले एक डीमैट अकाउंट और ट्रेडिंग अकाउंट खोलना आवश्यक होता है | डीमैट अकाउंट में शेयर स्टोर किए जाते हैं और ट्रेडिंग अकाउंट का उपयोग शेयर खरीदने और बेचने के लिए किया जाता है |

  2. कंपनी की फंडामेंटल एनालिसिस: डिलीवरी ट्रेडिंग में कंपनी की फंडामेंटल एनालिसिस करना बेहद महत्वपूर्ण होता है | निवेशक को कंपनी के वित्तीय प्रदर्शन, मैनेजमेंट, मार्केट में उसकी स्थिति और विकास की संभावनाओं का विश्लेषण करना चाहिए |डिलीवरी ट्रेडिंग क्या है / What is Delivery Trading In Hindi

  3. मूल्यांकन और टाइमिंग: सही कीमत पर शेयर खरीदना और समय के साथ उसे होल्ड करना महत्वपूर्ण होता है | निवेशकों को शेयर की वर्तमान कीमत, बाजार के ट्रेंड्स और कंपनी के भविष्य के प्रोजेक्ट्स का ध्यान रखना चाहिए |

  4. बाजार की रणनीति: निवेशकों को एक स्पष्ट निवेश रणनीति बनानी चाहिए, जिसमें यह निर्णय लेना शामिल हो कि कब शेयर खरीदने और कब बेचने हैं | इस रणनीति के आधार पर निवेशक को धैर्य बनाए रखना आवश्यक होता है |

  5. जोखिम प्रबंधन: डिलीवरी ट्रेडिंग में सफल होने के लिए जोखिम प्रबंधन महत्वपूर्ण होता है | निवेशक को अपनी पूंजी का एक बड़ा हिस्सा किसी एक शेयर में निवेश करने से बचना चाहिए और पोर्टफोलियो में विविधता बनाए रखनी चाहिए | प्राइस एक्शन ट्रेडिंग क्या है ?

डिलीवरी ट्रेडिंग और इंट्राडे ट्रेडिंग में अंतर

  1. समयावधि: डिलीवरी ट्रेडिंग में शेयर को खरीदने के बाद लंबे समय तक होल्ड किया जाता है, जबकि इंट्राडे ट्रेडिंग में एक ही दिन में शेयर खरीदे और बेचे जाते हैं |

  2. लाभांश और बोनस: डिलीवरी ट्रेडिंग में निवेशक को कंपनी द्वारा दिए गए लाभांश और बोनस शेयरों का लाभ मिलता है, जबकि इंट्राडे ट्रेडिंग में ऐसा नहीं होता |

  3. जोखिम स्तर: इंट्राडे ट्रेडिंग में जोखिम अधिक होता है क्योंकि शेयर की कीमतों में एक ही दिन में भारी उतार-चढ़ाव हो सकता है | वहीं, डिलीवरी ट्रेडिंग में लंबी अवधि का दृष्टिकोण होता है, जो बाजार के अस्थिरता से बचने का मौका देता है |

  4. लेन-देन की लागत: डिलीवरी – ट्रेडिंग में निवेशक को ब्रोकर की फीस, डीमैट अकाउंट चार्ज और अन्य शुल्कों का भुगतान करना होता है, जबकि इंट्राडे ट्रेडिंग में लेन-देन अधिक होते हैं, जिससे लागत अधिक होती है | निफ्टी 50 क्या है? NIFTY 50 Meaning

निष्कर्ष

डिलीवरी ट्रेडिंग उन निवेशकों के लिए एक उपयुक्त विकल्प है जो लंबी अवधि के लिए निवेश करना चाहते हैं और स्टॉक्स में समय के साथ मूल्य वृद्धि का लाभ उठाना चाहते हैं | हालांकि इसमें जोखिम भी शामिल है, लेकिन सही एनालिसिस और रिसर्च के साथ, निवेशक अपने पोर्टफोलियो को बढ़ा सकते हैं और वित्तीय स्थिरता प्राप्त कर सकते हैं |

आज हमने जाना (Today We Learned)

मेरे प्रिय पाठकों, आज़ के अपने इस लेख “डिलीवरी ट्रेडिंग क्या है / What is Delivery Trading In Hindi” में हम सबने डिलीवरी ट्रेडिंग से सम्बंधित सभी पहलू पर चर्चा किया | आज के इस लेख में हमने जाना कि डिलीवरी ट्रेडिंग क्या है, डिलीवरी ट्रेडिंग के क्या लाभ तथा क्या हानियाँ है के साथ साथ हमने इसके मूल बातों पर अध्ययन किया |

हम आशा करते है कि अब आपको डिलीवरी ट्रेडिंग से सम्बंधित सभी प्रश्नों के उत्तर मिल गए होंगे | आपको हमारा यह पोस्ट कैसा लगा हमें कमेन्ट कर अवश्य बताये | यदि आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ अवश्य शेयर करें |

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हेल्लो दोस्तों, मै पिछले 8 वर्षो से शेयर बाज़ार में निवेश तथा रिसर्च कर रहा हूँ | मै अपने अनुभव को Finohindi के माध्यम से आपके साथ सच्चाई के साथ सीधे तथा साफ शब्दों में बाटना चाहता हूँ | यदि आप शेयर बाज़ार में निवेश, ट्रेड करते है या आपकी शेयर बाज़ार में रूचि है तो आप सही जगह पर है

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